1-नवनीत कुमार झा,दरभंगा
डॉ. नीना छिब्बर की ‘टच स्क्रीन’ में सब के सुख -दुख में पहुँचने वाली अमरो बुआ के जैसी स्त्रियों का अब समाज में अभाव है!! अमरो बुआ जैसी स्त्रियाँ पहले बहुतायत में थीं जो रिश्तों की गाँठ को किस तरह से मजबूत करना है यह बखूबी जानती थीं पर आज की यह ‘टच स्क्रीन पीढ़ी’ यह नहीं जानती कि किसी के हृदय तक कैसे पहुँच जाता है!! इस बेहतरीन लघुकथा में दो पीढ़ियों के बीच के परिवर्तन और समझ को बखूबी रेखांकित किया गया है जो प्रशंसनीय है!!
लघुकथा एक बेहतरीन विधा है, क्योंकि यह अपने छोटे से आकार से ही बहुत सारगर्भित और सटीक यथार्थ को अनावृत कर देता है! महेश शर्मा की ‘जरूरत’ काफी खूबसूरती से यह दिखा पाई है कि बाजार किस हद तक हमारे जीवन में घुस आया है और एक क्लिक में ऑॅन-लाइन हम कुछ भी बेच सकते हैं।
लघुकथा ‘हैसियत’ बेशक एक बेहतरीन लघुकथा है!! जिस विनोद कुमार ने अपनी बहन उर्मिला की सास को जीते-जी मात्र साढ़े चार सो रुपल्ली की चादर दी ,उसी ने मरणोपरांत सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए बेशकीमती रेशम की चादर दी!!
सारिका भूषण के ‘एक स्पेस’ में कार्तिक स्नान के उल्लेख ने बचपन के दिनों की याद ताजा कर दी, जब दादीके साथ बागमती नदी में रोज डुबकी लगाने जाता था!! सचमुच हर रिश्ते की जीवंतता को बचाए रखने के लिए एक मर्यादित स्पेस का होना जरूरी है, खासकर पति और पत्नी के बीच तो इसका होना सबसे ज्यादा जरूरी है!
‘चेहरे’ लघुकथा में जो गड्ढों से भरा सड़क है, कुछ वैसा ही मेरे गाँव की सड़क का भी हाल है।हमारे बच्चों की संवेदनाशीलता को नष्ट करने वाले मायावी ‘राक्षस’ (मोबाइल) का बहुत ही घातक असर होता है बालमन पर और इस संवेदनशील विषय पर एक बेहतरीन लघुकथा लिखने के लिए डॉ. संध्या पी.दबे की जितनी तारीफ की जाए कम है!! बाकी लघुकथाएँ भी उल्लेखनीय हैं!!
2-शम्भू शरण सत्यार्थी औरंगाबाद, बिहार-824120
रचनाएँ पसन्द आईं। कथादेश का अक्तूबर अंक मिला। सुकेश साहनी का लघुकथा का गुणधर्म और पुरस्कृत लघुकथाएँ वास्तव में सारगर्भित लगा और एक अच्छी लघुकथा में क्या क्या गुण होने चाहिए इस आलेख में बखूबी दर्शया गया है। अगर इस आलेख को कोई भी लघुकथाकार पढ़ता है तो उससे सीख ले सकता है। सुकेश साहनी जी ने लघुकथा चयन के सम्बन्ध में इतना बेबाक और सरल ढंग से अपनी बातों को इस आलेख में रखा है कि किसी लघुकथा लेखक को शायद शिकायत का मौका नहीं मिलेगा। अगर कुछ गिला शिकवा भी होगा तो इस आलेख को पढ़ने के बाद दूर हो गया होगा। मैं तो इस आलेख को पढ़ने के बाद सुकेश साहनी जी का मुरीद हो गया हूँ। लेखक पाठक और चयनकर्ता की सोच अपने हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। कथादेश परिवार बधाई का पात्र है जो प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन कर लेखकों को राष्ट्रीय स्तर पर मंच प्रदान कर रहा है। इसकी जितनी भी सराहना की जाए कम होगी। लघुकथा के क्षेत्र में साहित्य की दुनिया में अभी बहुत काम बाकी रह गया है। नये पुराने सभी लेखकों से इस क्षेत्र में और काम किए जाने की आशा और उम्मीद हम पाठक वर्ग रख रहे हैं। अंक की अन्य रचनाएँ भी पसन्द आई।
एल बि छेत्री, चितवन, नेपाल
मैं नेपाल का रहने वाला हूँ और नेपाली@हिन्दी में कविताएं और लघुकथाएँ लिखता हूँ। जयपुर सूफी महोत्सव में अक्टूबर 7 को मेरी मुलाकात अर्पण कुमार जी से हुई। परिचय हुआ और उन्होंने मुझे ‘कथादेश’ अक्टूबर 2017 का अंक सप्रेम दिया। इसमें उनकी अपनी कथा ‘गौरीशंकर परदेशी’ प्रकाशित हैं कुछ दिनों बाद हम नेपाल लौट आए। मैं स्वयम् कथा लेखक होने के नाते आपकी पत्रिका के प्रति सम्मान प्रकट करता हूँ। सर्वप्रथम मैंने सुकेश साहनी जी द्वारा लिखित निर्णायक की टिप्पणी’ को बारीकी से पढ़ा। मैं जानना चाहता था आपके दृष्टिकोण में लघुकथा है क्या, कैसे बनती है सुन्दर लघुकथा? मनन करने के लिए बहुत सी बातें हैं इस आलेख में। मैं पूर्ण सहमत हूँ-किसी घटना का ब्योरा लघुकथा नहीं हो सकता। हमारे नेपाल में भी क्रमशः यही समस्या उभरकर आ रही है, रचनाओं में सृजनशीलता का अभाव। मैंने दस पुरस्कृत कथाएँ पढ़ीं और सचमुच ही थीम के हिसाब से महेश शर्मा की ‘जरूरत’ सबसे अच्छी है। कथा का शीर्षक भी प्रतीकात्मक है। इन ग्राण्ड पाओं की जरूरत है? अन्य भी सुन्दर कथाएँ हैं।
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