तस्कर ने जब सौगंध खाई कि बस, अब मैं यह धंधा नहीं करूँगा, तो इधर इसने उस पर तमंचा दाग दिया। तमंचा सिर्फ आवाज करके रह गया। तस्कर जिंदा का जिंदा। यह देख उसने तमंचा देनेवाले की गर्दन पकड़ी।
इस गरीब ने बताया कि ‘‘मेरी क्या गलती है? यह तो मैंने खासी भरोसे की जगह सरकारी आर्डिनेंस फैक्टरी से चुराया था।’’
इस अफसर ने बताया, ‘‘मेरा क्या दोष? ऊपर आप अपने पिताजी की ही गर्दन पकड़िए।’’
और इसने जाकर सचमुच अपने पिता की भी गर्दन पकड़ी। बोला, ‘‘आपकी वजह से देश की फैक्टरियों में ऐसे गलत तमंचे बन रहे हैं।’’
इस पर पिता ने कहा, ‘‘तुमसे क्या छिपाऊँ बेटे! उसमें दोष मेरा है, पर पूरी तरह से मेरा ही नहीं ,माल जुटाने वाले ठेकेदार का भी है, पर ठेकेदार की गर्दन न पकड़ना। हम कहीं के नहीं रह जाएंगे।’’
और पिता से जब उसने ठेकेदार का नाम पूछा, तो ज्ञात हुआ, वह ओर कोई नहीं, वही तस्कर था, जिस पर उसने तमंचा दागा था।
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