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Channel: लघुकथा
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कालापानी

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बारह बरस की आजी चौदह  बरस के दद्दा,,’ढेर कुल गहना कपड़ा मिली’ ये रंग -बिरंगे सपने लिये आजी ससुराल आ गईं .समझने को कुछ नही बस जिसने जिस काम में लगा दिया वो कर दिया ।करीब हफ्ता दस दिन बीता   ,दुआरे की गइया,बछिया,बत्तख , पट्टू, खरगोश अम्मा ,बाबा , , ,एक हूक सी उठी और भोकार बा कर रो पड़ी आजी। सभी दौड़े ,लगता है चोटा गई, ,लेकिन पूछने पर आजी ने कहा ,अपने घर जाना है।कोई खुलकर हँस पड़ा कोई मुस्करा कर  रह गया,,पर दयाभाव किसी के चेहरे पर नही।
एकरोज दोपहरिया थी, मदारी की हाँक लगाती बुलन्द आवाज साथ मे डँमरू  और घुघरू की धमक व छनक, ,,आजी पगला गई,  दुआरे की तरफ बेतहासा भागी, वहाँ बड़का दादा ,बुढ़उ कक्का  कुछ और लोग, , ,बचपना डयोढ़ी पर ठहर ,सहम सयाना हो गया।,,अचानक याद आया भण्डारें(अनाज रखने का बड़ा कमरा) में दाल वाले खोन्हा(मिट्टी का घड़े के आकार का बड़ा सा  पात्र)  के ऊपर की छोटी सी खिड़की .,मदारी की आवाज भी  उधर से आ रही थी।, ,बेचैन ,बौराई सी आजी  दौड़ पड़ी ,चट से खिड़की पकड़ खोन्हा पर चढ़ गई।  सामने थी बगिया भीड़ का  गोल घेरा और घेरे में मदारी भालू लिये।मदारी के आदेश ,डमरू की तान पर भालू नाच रहा था,.।आजी मगन, मंत्रमुग्ध, , ,,कुछ महिलाएँ आँचल मे बच्चोँ को छुपाये,,भालू से नजर झराने लगी। मदारी भालू की डोरी पकड़ गोलाई मे सबसे पैसे माँग रहा था , आजी स्वप्न लोक में,.,कितना समय बीता नहीं मालूम ,तभी अचानक बूढ़ी आजी (सास) ढूँढ़ती आ पहुँची,  सामने खिड़की से आजी को लटके देख चीख पड़ी,  आजी कूद पड़ी ;लेकिन तब तक आजी के भार से खोन्हा  टूट कर धीरे -धीरे बैठने लगा था,दाल बाहर बिखरने लगी थी ।बूढ़ी आजी ने खोन्हा का एक टुकड़ा उठाया  और आजी को तीन -चार धपाका लगाया ।आजी जड़ हो गई, ,फूट -फूट कर रो पड़ी, , ,।
आजी गहरी साँस लेकर कहती,,, “पहिले बियाह मतलब कालापानी” ।

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