गाँव में चलते समय माँ ने हिदायत दी थी कि महानगर में जाकर आवारा न हो जाए। शरीफों की तरह रहे। जिस घर में भी उसका परिचय बढ़े, वहाँ वह दोस्तों की बहनों को अपनी बहनें समझे। नई-नई नौकरी लग जाने पर महानगर में रहते हुए वह स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छन्द होना न लगा ले।
माँ की इन्हीं हिदायतों को ध्यान में रखता हुआ वह महानगर में रहने लगा। नए बने मित्र प्रहलाद की बहन शिल्पा को यद्यपि वह बहन ही मानता था ,किंतु उसे पुकारते समय ‘बहन जी’की बजाय प्रहलाद की तरफ उसका नाम लेकर ही पुकारता था।
कई बार उसने नोट किया कि शिल्पा उससे इधर-उधर की बातें करने लगी है। कभी वह कहती,‘‘आपने झील में बोटिंग की अथवा नहीं?’’ कभी कहती, ‘‘अगर आप शहर के पिकनिक स्पॉट्स पर नहीं जा सके हैं ,तो किसी दिन मैं ले चलूँ।” ’
उसने यह भी नोट किया कि यदि कभी संयोगवश प्रहलाद के घर न होने पर वह वहाँ पहुँच जाता ,तो उसकी माँ शिल्पा को उससे बातें करता छोड़कर इधर-उधर चली जाती थी। और तब शिल्पा को समझ पाना जैसे उसके लिए कठिन हो जाता था। वह घबरा उठता था शिल्पा की बातों से!
कल रात उसने फैसला किया कि अब वह अपनी माँ की हिदायतों का पूरी तरह पालन करने के लिए शिल्पा को हमेशा ‘बहन’जी सम्बोधन से ही पुकारा करेगा।
उसने ऐसा ही करना शुरू किया और यह देखकर कई दिनों तक उसकी समझ में नहीं आया कि अब तो शिल्पा न ही उससे ज्यादा बातें करती है, न ही उसकी माँ चाय के साथ उसके लिए अन्य चीजें खाने के लिए रखती हैं या रखती भी हैं तो लेने के लिए आग्रह नहीं करतीं।
और प्रहलाद! उसकी दोस्ती भी उतनी गहरी-सी नहीं लगती।
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