सुनील वर्मा
‘‘ठीक है माँ, अब हम चलते हैं।’’ अपनी पत्नी व बच्चों के साथ महेश ने हाथ में बैग उठाते हुए कहा। फिर बिना जवाब की प्रतीक्षा किए ही माँ के पैर छूते हुए उसने आगे कहा, ‘‘माँ, अब बाबूजी को गुजरे हुए पन्द्रह दिन से ऊपर हो गए हैं। मुझे ऑफिस से और अधिक छुट्टियाँ नहीं मिल सकतीं। हमें जाना होगा। आप अपना ध्यान रखना।’’
‘‘हम्म! पहुँचते ही खबर करना।’’ माँ ने आशीष देते हुए उसे संक्षिप्त-सा जवाब दिया और दरवाजे पर खड़ी होकर देर तक गली से दूर जा रहे ऑटो रिक्शा को देखती रही। फिर अन्दर आकर उसने अपने लिए चाय बनाई। चाय के कप में अँगुली डालकर दो छींटे दीवार पर लगी महेश के पापा की तस्वीर की तरफ डाले और कप से पहला घूंट भरा।
जीभ से छूते ही उसे मीठा ज्यादा होने का अन्दाजा हो गया। उसने नजर उठाकर दीवार की तरफ देखा, लगा जैसे वह कह रहे हों, ‘देखा….फिर से ज्यादा चीनी डाल दी न! कितनी बार कहा है मीठा कम लिया करो, मगर तुम मेरा कहा मानती कहाँ हो?’
उसने पल्लू से होंठ पोंछे और कप को एक तरफ रख दिया। कुछ देर बालकनी में टहलकर वापस कमरे में आ गई। जिनके होने के अहसास मात्र से दिन पंख लगाकर उड़ जाते थे, उनके चले जाने से वही दिन अब पहाड़-सरीखे हो गए थे। मन बहलाने के लिए उसने टी.वी. चला लिया। रिमोट लेकर चैनल बदल ही रही थी कि जाने-पहचाने बोल फिर से गूँजे, ‘सारे दिन ये फालतू सीरियल्स देखती रहती हो, इससे अच्छा तो समाचार चैनल ही देख लिया करो। कम-से-कम देश-दुनिया की खबर तो रहेगी।’’
मन बदला और उसने अनगिनत चैनलों में से खोजकर समाचार चैनल लगाया। तभी उसका फोन बजा।
‘‘माँ, हम लोग पहुँच गए हैं।’’ फिर कुछ देर रुककर महेश ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘माँ, आप समाचार सुन रही हो!’’
रिमोट से टी.वी. की आवाज कम करके उसने जवाब दिया, ‘‘नहीं, वो तो ऐसे ही….’
‘‘माँ, आप पापा को मिस कर रहे हो न! अगर आना जरूरी न होता तो मैं कुछ दिन और आपके पास….’’ महेश ने रुँधे गले से कहा तो माँ ने प्यार से डपटते हुए कहा, ‘‘फालतू की बातें मत कर। तू सफर में थक गया होगा, आराम कर।’’ ओर फिर बहू और बच्चों का ध्यान रखने की हिदायत देकर उसने फोन रख दिया।
आँखों से आँसू बाहर निकले ही थे कि नजर दोबारा तस्वीर पर गई। आदतन फिर से शब्द गूँजे, ‘तुम न, दूसरी निरूपा रॉय हो। छोटी-छोटी बातों पर रोने लगती हो। किसी दिन रो-रोकर आँखें फोड़ लोगी।’
भर आईं आँखों से चश्मा उतारकर उसने आँखें पोंछी और फिर से चश्मा लगाकर कहा, ‘‘नहीं रोऊँगी अब। पक्का….! बस आप यूँ ही साथ बने रहना…।’’
कमरे में धीरे-धीरे समाचारवाचक की आवाज बढ़ती जा रही थी।