‘‘ओ रिक्शा….बड़े बाजार चलेगा?’’
‘‘चलूँगा दीवान जी….?और सरकार कइसे हैं? पहले से कमजोर दिख रये। कछू बीमार-ऊमार रहे का?’’
‘‘अबे, तू तो ऐसे बात कर रहा है, जैसे पुरानी जान-पहचान हो।”
‘‘अरे, आप भूल गए सरकार….। पिछले साल राम-बारात वाले दिन आपने मेरे एसो बेंत मारो, एसो….मारो….कि अब तक निशान पड़ो है, ई देखो….माई-बाप ।”
‘‘मारा होगा….। सरकारी बेंत है, ई तो ससुरो चलतो ही रहै है ।”
‘‘लेकिन सरकार, मुझे मारने में तो, आपकी कलाई में भी मोंच आ गई थी ।”
‘‘अरे….तो तू किसना है क्या?”