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लघुकथाएँ

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1-पूर्वाभास

            ‘‘क्या हुआ!!! तू इतनी डरी हुई क्यों है?’’

            ‘‘शायद भैया ने मुझे उसके साथ देख लिया!!!’’

            ‘‘तो क्या हुआ?’’

            ‘‘बड़े दिनों बाद कल रात फिर पिताजी और भैया आपस में खुसर-पुसर कर रहे थे।’’

            ‘‘तो इसमें इतना डरने की क्या बात है?’’

            ‘‘क्योंकि ऐसे ही वो दोनों उस रात भी खुसर-पुसर कर रहे थे, और अगले दिन दीदी का एक्सीडेंट हो गया था।”

2-बोझ

            सुबह नाश्ते की टेबल पर बहन के बाजू को देखते ही उसने चीखते हुए पूछा,

            ‘‘कहाँ थी कल रात!!!’’

            ‘‘चीख क्यों रहे हो भैया!!! अपनी फ्रेंड की बर्थडे पार्टी में, और कहाँ!!!’’

            उसने एक जोरदार चाँटा बहन के गाल पर जड़ तो दिया ,किंतु कल रात मुखौटा डिस्कोथेक के रूम का वह वाकया और अपनी पार्टनर के बाजू पर बना टैटूनुमा बिच्छू, उसे डंक पर डंक मारे जा रहे थे।

3-टिप्स

आज निक्की की हल्दी है। कमरे में साड़ियों के पैकेट बिखरे पड़े हैं। कुछ औरतें उन पर नामों की पर्चियाँ लगा रही हैं कि कौन सी साड़ी किसे देनी है। कुछ औरतें जो रिश्ते से निक्की की भाभी लगती हैं वे बीच-बीच में उसको ससुराल के नाम से छेड़ती भी जा रही हैं।

एक ने निक्की के गाल पर हल्दी लगाते हुए कहा, “ससुराल में क्या करना है क्या नहीं, हमसे टिप्स लेती

जाओ बन्नो रानी, फि़र देखना राज करोगी राज।”

टिप्स नम्बर एक, पहले दिन से ही काम करके अपनी सुघड़ता का परिचय मत देने लग जाना, वरना कामवाली ही बनकर रह जाओगी”- एक ने कहा।

“हाथ में मेहँदी चढ़ी रहने तक बिना कहे एक चम्मच भी न धोना,वरना जिन्दगी भर के लिए हाथों से बर्तन माँजने का जूना लिपटा रहेगा-टिप्स नम्बर दो”- दूसरी बोली।

“शुरू में ही सास को पैर दबाकर सुलाने की आदत तो मती डारियो-बता देते हैं हाँ” -यह तीसरी बोली।

“और अगर ननदों को अपना मेकप-शेकप सिर चढ़ाया ,तो समझ लो हाथ से गई सिंगारपेटी”- चौथी ने बात जोड़ी।

“एक बात और ,जो तेरी खास साड़ियाँ हैं, उन्हें अभी मत ले जा,कहीं सासू माँ का दिल आ गया, तो उनसे हाथ धो बैठेगी सो अलग,उम्र भर नया पहनने को तरस जाओगी”-पाँचवी ने नजदीक आकर कहा।

निक्की उनकी बातें सुनकर पहले तो मुस्कुराई। फिर बोली,फ्भाभी, आप लोग तो मुझे ऐसे समझा रही हो, जैसे मुझे ससुराल नहीं,किसी जंग में जाना है।”

“ये लो कर लो बात, ये जो ससुराल के खबसूरत खाब सजाए बैठी हो न बिल्लो, पहुँचोगी तो पता चलेगा,”

“मुझे डरवा रही हो भाभी,”

“अरे हम क्यों डरवाने लगे, होता ही ऐसा है, सो वही समझा रहे हैं,”

“भाभी अभी जिसको ठीक से जाना नहीं, उसके लिए ऐसी राय बना लेना क्या ठीक है?”

“ओहो, बन्नो रानी, तो अभी से ससुराल के सुर में बोलने लगीं,”

“क्यों भाभी, आखिर वह भी तो मेरा ही घर होने वाला है,”

तभी पास पड़े निक्की के मोबाइल पर एक नम्बर चमका। उसे देख निक्की के चेहरे पर लालिमा-युक्त मुस्कान तिर आई। उसने पास बैठी उन औरतों में से एक को हाथ में लगी हल्दी दिखाते हुए फोन रिसीव कर उसके कान से लगाने को कहाँ हाव-भाव देखकर वह औरत शायद समझ गई कि फ़ोन निक्की के ससुराल से है। इसलिए उसने फोन रिसीव कर स्पीकर ऑन कर दिया।

पहले तो निक्की थोड़ा सकपकाई फिर स्पीकर ऑन पर ही बोलने लगी, फ्हेलो माँ! प्रणाम!”

“खुश रहो, क्या हो रहा है?”

“बस अभी हल्दी लग रही है-तो-”

“ओह्हो, गलत समय फोन कर दिया-अच्छा सुन कुछ वेस्टर्न ड्रेसेज भिजवा रही हूँ ट्रायल के लिए जो-जो पसंद आए, रख लेना-ठीक है-फिर बाद में फोन करती हूँ-”

“जी माँ-!”

फोन कट गया। निक्की ने कमरे में बैठी औरतों पर एक सरसरी निगाह डाली। थोड़ी देर पहले जहाँ टिप्स का शोर गूँज रहा था, अब वहाँ सुई पटक सन्नाटा छाया हुआ था।

उसने माहौल को थोड़ा हल्का बनाने के लिए चुटकी ली और मुस्कुराते हुए बोली- “हाँ भाभियो! तो अगली टिप्स?”

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 4-शोर

शोर से नमिता की नींद टूट गई। नमिता ने मोबाइल उठाकर देखा। डेढ़ बज रहा था।

सामने वाली बिल्डिंग में सुदूर देश-प्रदेश से आए कुछ लड़के रहते हैं। कुछ पढ़ने वाले हैं और कुछ नौकरीपेशा। जोर की ऊँची आवाज से यह जाहिर था कि यह शोर उन्हीं का है।

“ओफ्फां ओेह!-लोग सही कहते हैं कि ये निरे जंगली हैं-अपनी मौज-मस्ती में यह भी भूल जाते हैं कि इतनी रात गए दिनभर के थके-हारे कुछ लोग सो भी रहे होंगे-” भुनभुनाते हुए नमिता ने करवट

बदली।

“क्या हुआ निम्मो-नींद नहीं आ रही क्या?” आकाश ने उनींदी आवाज में पूछा।

“इस शोर में भला कोई केसे सो सकता है?”

“ऐसा करो-कान में रुई लगाओ और सो जाओ,” नमिता ने अपना तकिया उठाकर बगल में सोए आकाश पर दे मारा। फिर उसी तकिए को कान पर रखकर सोने की कोशिश करने लगी।

शोर और तेज हो गया था। वह उठकर बालकनी में आ गई। उसने लाइट जलाई और नीचे देखने लगी।

वहाँ एक टैक्सी खड़ी थी ,जिसमें लड़के बैठ रहे थे। दो लड़के मोटरसाइकिल पर थे। वे ही जोर-जोर से कुछ बोल रहे थे। पर वह नमिता को बिलकुल समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि उनकी भाषा ही अलग थी। बालकनी की लाइट जलने पर उन्होंने एक उड़ती नजर नमिता की ओर डाली। और फिर अगले मिनट भर में टैक्सी तेजी से चल पड़ी। पीछे-पीछे मोटरसाइकिल भी।

गली में फिर रात की नीरवता पसर गई।

नमिता ने खुली हवा में चैन की साँस ली और आकर बिस्तर पर लेट गई।

करवट बदलते हुए उसे याद आया कि आकाश ने कहा था कि किसी-”अच्छी-सी कॉलनी’ में मकान ले लेते हैं, पर उसने ही तो कहा था कि वहाँ हम इंसानों की आवाज़ सुनने को तरस जाएँगे। पर यह भी कहाँ पता था कि यहाँ इन जंगलियों से पाला पड़ेगा।

सुबह उसकी नींद फिर हल्के शोर से ही खुली। उसने पर्दे की ओट से झाँका। दो लड़के आकाश से मुखातिब थे। वे टूटी-फूटी हिंदी में बोल रहे थे, “थोड़ा पैसा और चाहिए-आपका हेल्प मिल जाता , तो हम-,”

“हाँ-हाँ-मैं अभी आया-” कहते हुए आकाश कमरे में आया।

“क्या हुआ-ये लड़के यहाँ-?”

आकाश ने टी-शर्ट डाली और गाड़ी की चाभी लेकर कमरे से बाहर निकल गया। पीछे-पीछे नमिता भी कमरे से बाहर आ गई।

“आकाश-ये तुम सुबह-सुबह कहाँ जा रहे हो?”

“निम्मो-सामने वाले खन्ना जी को रात हार्ट अटैक आया था-ये लड़के उनको हॉस्पिटल ले गए थे, जहाँ उनकी बाइपास सर्जरी हो रही है-इनके सारे पैसे खत्म हो गए हैं-बाकी आकर बताता हूँ!”

आकाश एक साँस में बोलते हुए खटा-खट सीढ़ियाँ उतरने लगा।

दोनों लड़के भी उसके आगे सीढ़ियाँ उतर रहे थे।

तभी उनमें से एक सीढ़ियाँ उतरते हुए ठिठका और पलटकर नमिता को देखते हुए बोला,”सॉरी-वो रात में शोर का आपको डिस्टर्ब हुआ!”

5-जरीब

“दीपा, हमें कल गाँव जाना होगा, अपने खेतों का हिस्सा-बाँटा करने के लिए।”

“क्यों?”

“पता चला है कि बड़े भैया हमारे हिस्से वाले खेतों की मिट्टी ईंट के भट्ठे वालों को बेच रहे है।” मीता आवेश में बोली।

“यह तो गलत बात है, इससे तो हमारे खेत बंजर हो जाएँगे!- सच दीदी, पिताजी ने ताऊजी के परिवार के लिए इतना कुछ किया ,लेकिन उनके बेटे ने—” यह सुनकर दीपा भी भड़क उठी।

“ऐसा नहीं है दीपा। पिताजी ने बताया था कि ताऊजी ने खेतों में काम करके पिताजी को पढ़ाया। उन्हें कभी कोई कमी महसूस नहीं होने दी।”

“:ठीक है, कम से कम उनके बेटे–,”

“दीपा, वे हमारे बड़े भैया हैं,” मीता ने दीपा को टोका।

“तो हाँ, दीदी-बड़े भैया को यह तो सोचना ही चाहिए कि खेतों में हमारा भी हिस्सा है।”

“बस, अब हम खेतों को यूँ बर्बाद नहीं होने देंगे। अपना हिस्सा अलग करवा कर किसी और को बटाई पर दे देंगे।”

अलगे दिन कार से मीता और दीपा गाँव के लिए रवाना हो गईं। दोपहर तक वे गाँव पहुँच गईं। बड़े भैया ने उन्हें स्थिति समझाने की कोशिश की। लेकिन उन दोनों ने जिद पकड़ ली कि नहीं हमारे खेत अलग कर दिए जाएँ, फिर उन्हें अपने खेतों के साथ जो करना हो वे करें।

थोड़ी देर बाद खेतों की नपाई शुरू हो गई। लेखपाल जरीब से नापकर खेतों में निशान लगवाने लगा। शाम होते-होते खेतों का बँटवारा हो गया।

“दीदी,यहाँ का काम तो हो गया। आगे का क्या प्लान है?”

“वापस चलते हैं। पर बहुत रात हो जाएगी-”

 “ठीक है, रास्ते में किसी होटल में स्टे कर लेंगे।”

दोनों कार की तरफ बढ़ी ही थीं कि बड़े भैया की बेटी ने आकर कहा,”बुआ चलिए खाना खा लीजिए, मम्मी ने अंदर बुलाया है।”

जब तक दोनों उससे कुछ कहतीं,तभी एक और आवाज आई।

“राती में लौटब ठीक ना हव बच्ची। बिहाने जाया। तोहार लोगन के कमरा साफ करवा देले हई।”

दोनों चौंककर पलटीं। पीछे बड़े भैया खड़े थे। दोनों सकपकाकर एक-दूसरे का मुँह देखने लगीं। वे बड़े भैया के इस आग्रह को ठुकरा ना सकीं।

“क्या सोच रही हो दीदी?” रात को बिस्तर में लेटे-लेटे छत ताकती मीता से दीपा ने पूछा।

“यही कि हमने शायद ठीक नहीं किया!”

“’क्यों?”

“’अब देख न खेत तो बँट गए, लेकिन जो दिलों में बसे प्यार को बाँट दे, ऐसी कोई जरीब नहीं बनी,”

“सच! एक बात कहूँ दीदी?”

“क्या”

“यही कि क्यों न हम अपने खेत बड़े भैया को ही दे दें बटाई पर?”

मीता ने दीपा की ओर ऐसे देखा जैसे वह यही सुनना चाहती थी।

मीता को लगा जैसे उन्होंने दिन में कोई अपराध किया था और अब उसके प्रायश्चित का तरीका मिल गया है।

उसने दीपा के गले में बाँह डाली और बोली,”चल सो जा, अब सुबह उठकर भैया से सबसे पहले यही बात करेंगे।”

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