Quantcast
Channel: लघुकथा
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2485

नियति स्वीकार

$
0
0

– नहीं… नहीं। कह दिया ना, नहीं खाना है। 

– खा ले बेटा, जिद नहीं करते। 

– नहीं बापू। दूसरे निठल्ले मलाई मारा करते हैं और हम किसान इतना खटकर भी…..। 

…. क्या करेगा, हमारा किस्मत ही ऐसा है। 

– किस्मत को मत दोष दो बापू। वे हमको लूटते हैं, हम अब उनको लूटेंगे। 

आज तीसरा दिन है। वह बुखार से पस्त। अवस भाव से देखा माँ-बापू ने। मिर्च, प्याज, रोटी सामने पड़ी है। दूसरे के लिए ईख की मिठास पैदा करनेवाला खुद तीखी मिर्च के साथ…। साहूकार सारा अन्न ले गया । छोड़ गया बाजरे का आटा और हरी मिर्च ।मिर्च हरी हो या लाल, किसी की तबियत हरी नहीं कर सकती। 

भिक्खू उसी रात साहुकार के दरवाजे पर जा, अंदर की आहट लेने लगा। 

अंदर की आवाज़ थी- दे दो बाबू, खाने को दे दो। मेरा भइया बड़ा बीमार है। कुछ अन्न दे दो। बदले में सारा बाजरा ले लेना। 

बहन चरकी की आवाज़ से चौंका भिक्खू। 

– इसी से कह रहा हूँ, मेरी बात मान ले। मैं तुम्हें अन्न भी दूँगा, पैसे भी। 

– बदमाश!….हमको का समझ रहा है।… मेरे में भी दम है। 

साहूकार टूट पड़ता कि सहुआइन की खाँसी से घबराकर बोला – जा, अभी जा। 

भिक्खू के लिए अँधेरा रात की कालिख बन गया। चरकी से पहले वह घर की ओर दौड़ पड़ा। चरकी आहट लेती हुई घर में घुसी। अँधेरे में घुसते ही भाई से टकरा गई। 

आँखें अभ्यस्त हुई तो देखा, भाई वैसे ही सूखी रोटी का बड़ा-बड़ा कौर भकोस रहा है। गले से हिचकी निकल रही है. … वह न तो मिर्च को देख रहा, न पानी को। 

और… और न ही चरकी को।

-0-1 सी, डी   ब्लॉक , सत्यभामा ग्रैंड, पुराने एस बी आई के पास, कुसई बस्ती, डोरंडा, राँची, झारखण्ड -834002

ई मेल –  anitarashmi2@gmail.com


Viewing all articles
Browse latest Browse all 2485

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>