‘‘क्या कहा तुमने…? …तुम मुझे तलाक भी नहीं देने दोगी…?’’
‘‘हाँ, ठीक सुना तुमने! तुम सोचते हो कि शादी अपनी मर्जी से करोगे और
तलाक भी अपनी मर्जी से दे दोगे, तो तुम गलत हो। जो तुम आज मेरे साथ कर रहे हो, वही
कल किसी और के साथ करने के लिए मैं तुम्हें खुला छोड़ने वाली नहीं हूँ।’’
‘‘जब तुम मेरे साथ खुश नहीं हो, मेरा व्यवहार तुम्हें अच्छा नहीं
लगता तो तलाक लेकर मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ती?’’
‘‘हाँ वीरेश, मैं तुम्हारे साथ खुश नहीं हूँ ;लेकिन खुश रहना
चाहती हूँ। तुम्हारा व्यवहार मेरे प्रति अच्छा नहीं है, लेकिन मैं चाहती हूँ कि तुम
मेरे साथ अच्छा व्यवहार करो। तुम मेरा सम्मान नहीं करते लेकिन मैं तुमसे सम्मान पाना
चाहती हूँ।… जो मैं तुमसे पाना चाहती हूँ, वो मुझे तलाक देकर तो मिल नहीं सकता। यदि
मिल पाएगा ,तो इस रिश्ते को बचाकर और तुम्हें सुधारकर ही मिल पाएगा।’’
‘‘…और रिश्ता हमारा बचने से रहा। मैं भी, जैसा हूँ, वैसा ही
रहने वाला हूँ!’’
‘‘मैं एक औरत हूँ और मुझे अपनी शक्ति पर पूरा विश्वास है… तुम
समझते रहो मुझे कमजोर…’’
‘‘दीक्षा मैडम! मैं शहर का जाना-माना वकील हूँ। इस पर भी विश्वास
है न तुम्हें…?’’
‘‘मेरा तो इस बात पर भी विश्वास है कि वकालत की शक्ति इन्सानियत
और रिश्तों की सामाजिकता से ऊपर नहीं हो सकती…!’’
‘‘तो फिर ठीक है, कल भिजवाता हूँ तुम्हें नोटिस… तैयार रहना
कोर्ट में दुश्चरित्र सिद्ध होने के लिए…’’
‘‘ऐसा ही सही। लेकिन कोर्ट में मुझे बुलाने से पहले अच्छे से
सोच लेना कि तुम्हारे मान-अपमान के लिए तुम्हीं जिम्मेवार होगे… ऐसा न हो कि घिसे-पिटे
फार्मूले के ध्वस्त होने पर वकालत करने के योग्य ही न बचो…’’
दोस्तो, इस कथा में मैं एक पात्र होता और कोर्ट में मौजूद रहा
होता, तो आगे की कथा जरूर सुनाता। पर मैंने सरसराती हवा में एक पिंजड़े को बाहर से पकड़कर
झूलती चिड़िया से कल जो सुना, वो आपसे साझा करना चाहता हूँ।
करीब छह महीने बाद माननीय न्यायाधीश के कक्ष से बाहर आते युगल
में से जो पत्नी थी, वह बहुत खुश थी। न्यायाधीश महोदय ने उसे अपने ‘पति’ नामक रिश्ते
को सुधारने के लिए दो वर्ष का समय दे दिया था।
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पिंजड़े को पकड़कर झूलती चिड़िया
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