उनके पेट में पथरी हो गई थी। बुढ़ापे में दर्द असहाय हो गया तो डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी। ऑपरेशन लम्बा था। अस्पताल का छोटा-सा कमरा दिन-रात लोगों से खचाखच भरा रहता। दूर-दूर से बेटियाँ आईं। प्यार, सद्भावना और सेवा ने वृद्ध की सारी पीड़ा हर ली। डूबती आँखों में नई ताजगी समा गई।
आठ दिन बीत गए। अस्पताल से छुट्टी का दिन था। फीस, दवाइयाँ और कमरे का किराया डॉक्टर को देना था। उन्होंने अपने मित्र से कहा, ‘‘जरा डॉक्टर से भेंट कर लूँ। एक बार देख लें फिर चलेंगे।’’ मित्र ने डॉक्टर को बुलाया।
‘‘कहिए, अब सब ठीक तो है।’’ डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए पूछा। वृद्ध के चेहरे पर विषाद की रेखा फैल गई।’’ आठ दिनों से स्वर्ग में था। आज आप कहाँ भेज रहे हैं….?’’ डॉक्टर चौंका। वह कुछ समझ नहीं पाया। बिल्कुल पास बैठक्र स्नेह से पूछा, ‘‘क्यों, ऐसी क्या बात है?’’ वृद्ध ने मुस्कुराने का प्रयास किया।
‘‘घर के उस एकाकी उपेक्षित दिनचर्या से आपका अस्पताल कितना सुखद है। सोचता हूँ, कुछ दिन और बीमार रहता….’’
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