गोपाल जैसा साधारण किसान का लड़का अपने दोस्तों के साथ यदि पिकनिक पर न जाए तो किसी को क्या…..लेकिन उसकी सुरीली आवाज को कोई न छोड़ना चाहता था, इसलिए सबने आग्रह पूर्वक उसे चलने के लिए कर ही लिया।
झील के दाएँ किनारे हरी-हरी घास पर दो-दो, चार-चार के समूह में बिखरकर वे आनंद लूट रहे थे। डॉन और जोनी पॉप-म्यूजिक पर थिरक रहे थे। मोना और कमल झील के किनारे बैठा पानी में कंकड़ फेंक रहे थे। कुछ ताश खेलने बैठ गए थे तथा कुछ…,अचानक पश्चिम से एक काला बादल उठा और सूर्य को अपनी चपेट में लेता हुआ मौसम को मस्त बना गया। पॉप-म्यूजिक अधिक तेज हो गया।
अब गाने के लिए गोपाल की खोज हुई। वह एक ठूँठ के नीचे खड़ा कुछ सोच रहा था। वीणा का ग्रुप उसकी ओर भागा, ‘‘इस मौसम ने तो हमारी पिकनिक को चार चाँद लगा दिए हैं, हो जाए कोई मस्त-मस्त गीत…’’
‘‘नहीं वीणा…, मन नहीं है।’’ उसके चेहरे की रेखाएँ अधिक गहरा गईं थीं।
‘‘क्या बात है? तुम इतने उदास-उदास क्यों हो?’’ सलिल ने निकट आकर पूछा।
‘‘कुछ नहीं….,ऐसे ही…’’
‘‘फिर भी…, कुछ बताओ तो सही….’’ वीणा ने आग्रह किया।
‘‘वीणा…, बात ऐसी है कि…,गाँव में फसल पकी खड़ी है…’’ एक-एक शब्द उसके तालू से चिपककर निकल रहा था।