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प्रेमवती की चिट्ठी

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बैरक में घुसते ही प्रकाश ने बैल्ट कमर से खींचकर खूँटी पर लटका दी। बिस्तर के साथ पड़ी कुर्सी पसर बैठते हुए वह तकिए के नीचे से चिट्ठी निकालकर पढ़ने लगा….मुन्नी के पापा, हम सब यहाँ ठीक–ठाक हैं। आप वहाँ खुशी होंगे, भगवान से मैं ऐसी कामना करती हूँ। पूरा साल हो गया, आप घर नहीं आए…..नस जाने क्यों डर–चिंता सताती रहती है। पिताजी की खाँसी ठीक नहीं हो रही है, रोज ही डॉक्टर के पास ले जाना पड़ता है। नुक्कड़ वाले डाक्टर ने फीस बढ़ाकर तीन चार गुनी कर दी है, पर उसके पास जाना भी मजबूरी ही है। मुन्नी बहुत याद करती है। उसे भी छोटे स्कूल में डाल दिया है, अभी फीस भी भरनी है। आप जो रुपए भेजते हो वो सब तो उधारी में ही चले जाते हैं। बन पड़े तो कुछ ज्यादा रुपए भेजना। यहाँ हर चीज के दामों में आग लगी हुई हैं,महीने के आखिर में पाई पाई को दूसरे का मुँह देखना पड़ता है। बस बाकी फिर! आपके पत्र की प्रतीक्षा में- आपकी प्रेमवती।

‘‘दामों….में…आग।’’ वह बुदबुदाया और आँखें मूँद बिस्तर पर पैर पसार लिये।

उसकी नींद तब खुली जब अपनी चारपाई पर लेटते हुए सिपाही महेन्द्र ने उद्घोषणा की–भाई लोगो! कल भी संसद मार्ग पर ही ड्यूटी है।’’

‘‘क्यों कल क्या है?’’ प्रकाश लेटे–लेटे बोला।

‘‘होगा कोई प्रदर्शन’’

‘‘क्या नौकरी है?’’ वह बड़बड़ाया।

सुबह तैयारियाँ शुरू हो गई। संसद मार्ग को बैरिकेट से बंद कर दिया गया। हैलमेट, लाठियों से लैस सिपाहियों की दो कतारें बैरिकेट से सटकर तैनात हो गईं। दोनों किनारों पर दो–दो सिपाही टियर गैस सेल भरकर खड़े कर दिए गए। सबसे पीछे की पंक्ति हथियार बंद सिपाहियों की थी।

थोड़ी देर में, ए.सी.पी. ने ठीक सिपाहियों के सामने खड़ा होकर संबोधन किया, ‘‘हर वक्त मुस्तैद रहना है, इशारे भर से हरकत में आ जाना है। कोशिश करो कि वे बैरिकेट तक न पहुँच पाएँ समझे। वे जरूर कोशिश करेंगे बेरिकेट गिराने की लेकिन जो हुक्म हो उसे सख्ती से लागू करना है। कानून व्यवस्था को हर हाल में बनाए रखना है….समझे।’’

प्रकाश बैरिकेट से सटी पहली पंक्ति में खड़ा था। तैयारी पूरी हो चुकी थी, बस प्रदर्शनकारियों का इन्तजार था।

कुछ ही देर में नारों की गुनगुनाहट सुनाई देने लगी। फिर धीरे–धीरे आवाज स्प्ष्ट होती गई….इंकलाब जिन्दाबाद, पूँजीवादी मुर्दाबाद, महँगाई पर रोक लगाओ।

देखते ही देखते झंडों और बैनरों का सैलाब एकदम आँखों के सामने आ खड़ा हुआ।

अब हाथों में उठाए बैनरों पर लिखी इबारत साफ दिखाई देने लगी–दवाइयों के दाम कम करो। महँगाई पर रोक लगाओ। शिक्षा मुफ्त करो।

प्रकाश एक–एक बैनर को गौर से पढ़ने लगा फिर आश्चर्यवश अचानक बोला, ‘‘अरे….ये तो प्रेमवती की चिट्ठी है।’’

तभी पीछे से ए.सी.पी. की कड़क आवाज आई, ‘‘लाठी चार्ज।’’


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