वाङ्मय अपना स्वरूप और स्वभाव समय और समाज के सापेक्ष बदलता रहता है। एक समय था जब साहित्य सृजन का माध्यम काव्य था। समय के साथ-साथ हिन्दी साहित्य में गद्य का आविर्भाव हुआ। गद्य के अनेक रूपों में उपन्यास,कहानी,गल्प को पाठकों ने हाथों-हाथ लिया।आज व्यक्ति के पास समय की कमी के कारण लघु आकार की साहित्यिक विधाओं का दायित्व बढ़ा है। कम समय में अधिक पाठकीय आनंद प्रदान करने वाली ऐसी ही एक महत्वपूर्ण विधा है‘लघुकथा’। लघुकथा नाम से ही लघुकथा है परंतु यह विधा अपने छोटे से कलेवर में विराट तत्त्वों को संयोजित करती है।अपने लघुकलेवर में लघुकथा गहरी अभिव्यक्तियों को समाहित किए रहती है।बवर्तमान में यह साहित्य की केन्द्रीय विधा के रूप में उपस्थित है।आज प्रत्येक पत्र-पत्रिका लघुकथा को विशिष्ट स्थान देती है।अनेक विशेषांकों और लघुकथा-संग्रहों ने इस विधा को पाठक समुदाय में लोकप्रिय बनाया है।‘लघुकथा मेरी पसंद’ जैसा स्तम्भ भी इस परिप्रेक्ष्य में पाठकों की विशिष्ट पसंद है। प्रसन्नता की बात यह भी है कि लघुकथा का स्वरूप निर्धारण करने में भी अनेक लघुकथाकारों ने अपना खून-पसीना एक किया है। कोई भी विधा विमर्श का विषय तभी बन पाती है,जब उस पर आलोचनात्मक दृष्टि से भी काम किया जाए। डॉ.सतीशराज पुष्करणा,बलराम,अशोक भाटिया,माधव नागदा,रामेश्वर काम्बोज‘हिमांशु’,मधुदीप,उमेश महादोषी,सुकेश साहनी जैसे लघुकथाकारों ने लघुकथा का समीक्षात्मक स्वरूप निर्धारित किया और इस विधा की बौद्धिक शक्ति और सामर्थ्य का साक्षात्कार भी करवाया है। इस प्रकार वर्तमान समय में लघुकथा अपने कथ्य और शिल्प की पैनी धार तथा अपने सार्थक-सटीक विमर्श विस्तार के साथ साहित्य जगत् में ‘लाइमलाइट’ में है।
अपने अध्ययन के दौरान मुझे अनेक लघुकथाओं को पढ़ने-समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। विविध विमर्शों पर आधारित लघुकथाओं ने भी अपना अलग प्रभाव छोड़ा। बाल साहित्य पर समालोचनात्मक अनुशीलन करते समय अनेक ऐसी लघुकथाएँ भी पढ़ने को मिलीं,जिनमें बाल मनोविज्ञान का गहरा पुट था। यह जानकर संतोष भी हुआकि अनेक बड़े लघुकथाकारों ने बालमन को भी अपने सृजन का विषय बनाया है। फिलवक्त मुझे दो लघुकथाएँ याद आ रही हैं। पहली है प्रख्यात प्रवासी लेखक अभिमन्यु अनत की ‘अपना रंग’ और दूसरी है रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ की ‘सपने और सपने’। दोनों ही लघुकथाओं में बाल मनोविज्ञान का स्वरूप निरूपित किया गया है;परंतु यहाँ कोरा बाल मनोविज्ञान ही नहीं है। यहाँ बच्चों के कोमल चरित्र कठोर सामाजिक धरातल पर उकेरे गए हैं। सामाजिक यथार्थ का खुरदुरापन, बच्चों के कोमल मनपटल पर अनजाने में ही कितनी खरोंचे डाल जाता है,यहाँ द्रष्टव्य है।
अभिमन्यु अनत ने अपनी लघुकथा ‘अपना रंग’ में पौराणिक पात्रों कृष्ण-बलराम को लेकर अपनी बात कही है। लघुकथा का पात्र श्याम काले रंग का बालक है। स्वयं भगवान कृष्ण उसे यह नाम देते हैं। श्याम कृष्ण से सदैव एक दूरी बनाये रखता है,क्योंकि उसे कृष्ण के काले रंग से नफरत है। अभिमन्यु अनत इस लघुकथा का समापन इन शब्दों में करते हैं,‘इस संसार में बहुत से ऐसे लोग हैं,जिन्हें अपना काला रंग दिखाई नहीं देता।’प्रस्तुत लघुकथा में एक बिम्बात्मकता है। ध्यानपूर्वक विचारकर देखा जाए तो लघुकथा में एक संदेश छिपा हुआ है। हम अपनी कमजोरियों या कमियों के आगे दूसरों की अच्छाइयों को भी नज़रअंदाज़ कर बैठते हैं। बच्चों की आपसी प्रतिद्वंद्विता का शब्दांकन लेखक ने सुंदरता से किया है। और यह प्रतियोगिता-प्रतिद्वंद्विता केवल बच्चों में ही क्यों,बड़ों में भी शिद्दत से पाई जाती है। एक मनोवैज्ञानिक सत्य को ‘अपना रंग’ में अनत जी शब्दायित करने में पूर्ण सफलता प्राप्त करते हैं। लघुकथा का अंतिम वाक्य पूरी लघुकथा को सार रूप में अभिव्यक्ति देता है।
मेरी दूसरी प्रिय लघुकथा है रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ की ‘सपने और सपने’। तीन अलग-अलग आर्थिक स्तर के बच्चों को लेकर बुनी गई यह लघुकथा एक ओर जहाँ बच्चों के सच्चे-सजीले सपनों का शब्दांकन है,वहीं दूसरी ओर समाज के निर्मम सत्य का मार्मिक उद्घाटन भी है। सेठ गणेशीलाल,नारायण बाबू और जोखू रिक्शे वाले के बच्चे खेलते समय अपने-अपने सपनों का ज़िक्र करते हैं। सेठ का बच्चा पहाड़ों-नदियों के पार जाता है। नारायण बाबू का बेटा सपने में बहुत तेज स्कूटर चलाने में ही खुश है। तीसरा बच्चा जो जोखू रिक्शे वाले का बेटा है,सपने में खूब डटकर कई रोटियों की दावत उड़ाता है;वो भी नमक और प्याज के साथ। लघुकथा का अंत और भी मार्मिक शब्दों से हुआ है।जोखू का बेटा बताता है कि उसे अभी तक भूख लगी है।इतनी वैज्ञानिक प्रगति और ‘ग्लोबल वर्ल्ड’ के ज़माने में भी ऐसे लोग हैं, जिनके सपने आज भी दो वक्त की रोटी के निज़ाम के गुलाम हैं। वास्तव में स्वप्नदर्शी दुनिया का दूसरा पक्ष कहीं अधिक कड़वा और कठोर है। लघुकथा का विस्तार भी बहुत अधिक नहीं है। केवल तीन पात्रों के छह कथनों में यह लघुकथा समाप्त हो जाती है। प्रस्तुत लघुकथा का शीर्षक भी अनेकार्थगर्भी है। सपने या अधूरे सपने या अन्य किसी शीर्षक में वो बात नहीं आ पाती, जो ‘सपने और सपने’ में महसूस होती है।
इस प्रकार दोनों लघुकथाएँ बाल मनोविज्ञान के साथ-साथ सामाजिक यथार्थ का सफलतम प्रतिचित्रण हैं।
1-अपना रंग
– अभिमन्यु अनत
उसका नाम श्याम था और वह भी गोप बालकों के साथ गोकुल में गौएँ चराया करता था। उसका रंग काला था। जिस समय सभी गोप – बालक कृष्ण के इर्द-गिर्द बैठे बांसुरी की तान सुना करते थे, उस समय वह अलग किसी पेड़ के नीचे बैठा रहता । वह काला बालक काली गाय का दूध कभी नहीं पीता था। इसका कारण उससे कभी किसी ने नहीं पूछा था। भगवान कृष्ण उसे बहुत चाहते थे। और उन्होंने ही उसका नाम श्याम रखा था । श्याम इस नाम का अर्थ नहीं जानता,पर उसका उच्चारण अच्छा होने के कारण वह नाम उसको प्यारा था।
एक दिन सभी लड़के दो दल में बैठकर कोई खेल शुरू करना चाहते थे । संयोग से श्याम कृष्ण के दल में चला गया । तुरंत ही उधर से हटकर वह दूसरे दल में आ गया और चिल्लाकर बोला- ‘मैं कृष्ण के दल में नहीं रहूँगा’।
‘ क्यों?’ सभी गोप बालकों ने एक साथ प्रश्न किया ।
‘क्योंकि मैं उसे पसंद नहीं करता।’
‘तुम्हारे कृष्ण को पसंद न करने का कारण क्या है?’
‘क्या बात है श्याम, तुम कृष्ण से घृणा क्यों करते हो ?’
उस काले लड़के ने और भी दूर जाकर ज़ोर से कहा-
‘ कृष्ण काला है । मुझे उसका रंग अच्छा नहीं लगता ।’
उस काले लड़के की यह बात सुनकर सभी गोपबालक हैरान रह गए ; पर कृष्ण हँसता रहा । बाद में उसने बलराम से कहा -‘इस संसार में बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें अपना रंग दिखाई नहीं पड़ता।’
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2- सपने और सपने
– रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
तीनों बच्चे रेत के घरौंदे बनाकर खेल रहे थे कि सेठ गणेशी लाल का बेटा बोला ,”रात मुझे बहुत अच्छा सपना आया था।”
“हमको भी बताओ।” दोनों बच्चे जानने के लिए चहके।
उसने बताया ,”मैं सपने में बहुत दूर घूमने गया; पहाड़ों और नदियों को पार करके।”
नारायण बापू का बेटा बोला,” मुझे और भी ज्यादा मजेदार सपना आया । मैंने सपने में बहुत तेज स्कूटर चलाया। सबको पीछे छोड़ दिया ।”
जोखू रिक्शे वाले के बेटे ने कहा,” तुम दोनों के सपने बिल्कुल बेकार थे।”
” ऐसे ही बेकार कह रहे हो! पहले अपना सपना तो बताओ।” दोनों ने पूछा ।
इस बात पर खुश होकर वह बोला ,”मैंने रात सपने में खूब डटकर खाना खाया । कई रोटियाँ खाईं, नमक और प्याज के साथ… पर…।”
“पर ,पर क्या?” दोनों ने टोका। “मुझे अभी तक भूख लगी है।” कहकर वह रो पड़ा।
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