1-दिल्ली हिन्दी अकादमी में लघुकथा-पाठ
27 मार्च को हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा पहली बार लघुकथा –पाठ का आयोजन किया गया। इस आयोजन के लिए अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा जी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। बलराम अग्रवाल , मधुदीप,सुभाष नीरव, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, शोभा रस्तोगी,बलराम,, हीरालाल नागर, डॉ पूरनसिंह और अशोक भाटिया ने लघुकथा पाठ किया।
कार्यक्रम का संचालन अशोक भाटिया ने किया । कार्यक्रम –संचालन के समय लघुकथा को कई बार छोटी कहानी कहा गया, जो निश्चित रूप में भ्रामक था।
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पटना ,28वें लघुकथा सम्मेलन में लघुकथा को लेकर गहरी पड़ताल
लघुकथा का स्रोत वैदिक ऋचाओं से जोड़ा जा सकता है। लघुकथा की आत्मा विश्व की किसी भी भाषा में प्रतिबिम्बित हो सकती है। सभी भारतीय भाषाओं में इसके स्वरूप देखे जा सकते हैं। हिन्दी में लघुकथाओं का प्रारंभ लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले से माना जा सकता है। हिन्दी की गद्यात्मक सभी विधाओं में हिन्दी–लघुकथा की अपनी एक विशिष्ट पहचान बन चुकी है। आज सम्पूर्ण भारतवर्ष में लघुकथा का सृजन और प्रकाशन अपना एक खास महत्त्व रखता है। लेकिन यह गर्व के साथ कहा जा सकता है कि हिन्दी–लघुकथा के सृजन और उसके विकास में बिहार प्रदेश अग्रणी रहा है और आज भी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य बिहार की पावन धरती पर हो रहा है। बिहार में अनेक लघुकथाकार हैं जो हिन्दी लघुकथा के प्रेरणा पुरुष कहला रहे हैं। ये शब्द थे आलोचक डॉ. रामदेव प्रसाद के जिन्हे वे 28वें लघुकथा सम्मेलन के अवसर पर बोल रहे थे।
अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच पटना ने हिन्दी लघुकथाओं के विकास में राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति की है। यह मंच हर साल अखिल भारतीय लघुकथा का सम्मेलन कर रहा है, जिसके प्रेरणा पुरुष डॉ. सतीशराज पुष्करणा व युवा डॉ. ध्रुव कुमार है। इसका 28 वाँ लघुकथा सम्मेलन 17 अप्रैल को भारतीय नृत्यकला मन्दिर के एमपीसीसी हॉल में हुआ। सम्मेलन की यह ऐतिहासिक महती सभा कुल चार सत्रों में संचालित हुई। देश के विभिन्न प्रदेशों से हिन्दी लघुकथाकारों ने इस ऐतिहासिक राष्ट्रीय लघुकथा सम्मेलन में शिरकत की। हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठित ग्यारह कथाकारों केा ‘लघुकथा मंच सम्मान’ से सम्मानित किया गया। वहीं, उत्तर प्रदेश से आए राघवेंद्र कुमार को लघुकथा सम्भावना सम्मान और किलकारी पटना के दो बच्चों (प्रियंतरा भारती और प्रवीण कुमार) को ‘लघुकथा अंकुर सम्मान’ से सम्मानित किया गया। इस ऐतिहासिक लघुकथा सम्मेलन में महत्त्वपूर्ण लघुकथाओं का पाठ और विभिन्न रूपों में उनका विश्लेषण भी किया गया।
इस सम्मलेन में डॉ. मिथिलेशकुमारी मिश्र, डॉ. पुष्पा जमुआर, डॉ. मेहता नागेंद्र सिंह, वीरेंद्र कुमार भारद्वाज, आलोक भारती और भगवान सिंह भास्कर की पुस्तकों का विमोचन भी हुआ। इस राष्ट्रीय सम्मेलन में अनेक लब्धप्रतिष्ठित लघुकथाकारों ने अपनी लघुकथा का पाठ भी किया। कुछ ने लघुकथा को विश्लेषणपरक पुस्तकों का आलोचना पाठ भी किया। इनमें मिथिलेश अवस्थी, डॉ. ध्रुव कुमार, डॉ. अनिता राकेश, श्री सिद्धेश्वर, वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज प्रमुख हैं। इन सबकी लघुकथा के पाठ तथा विवेचन में जो मुख्य तथ्य उभकर आये उसकी समीक्षा भी की गई। सम्मेलन में यह बात उभकरकर आई कि लघुकथा का रूप लघु होता है। लेकिन कितना लघु और कैसा लघु? इस पर कई लोगों ने अपनी राय रखी। नागपुर से आए मिथिलेश अवस्थी ने कहा कि लघुकथा के लिए शब्दों की सीमा और अनुशासन दोनों जरूरी है। लगभग सभी लोगों ने माना कि लघुकथा, छोटी कहानी से भिन्न होती है। इसकी अलग पहचान है; इसलिए यह साहित्य की एक स्वतंत्र विधा के रूप में विद्यमान है। बाह्य परिवेश में शीर्षक, भाषा शैली आदि पर विचार किए गए। कथाकारों ने कहा कि शीर्षक ऐसा महत्त्वपूर्ण आयाम है ,जहाँ कथाकारों की स्वयं परीक्षा होती है। सही शीर्षक का चुनाव ही सही कथाकार की पहचान होती है। लघुकथाकारों की संवेदनशीलता विशिष्ट हुआ करती है। डॉ. अनिता राकेश ने कहा कि जहां पीड़ा है वहीं सृजन है। लघुकथा के लघुस्वरूप में यह संवेदना समाहित रहती है। सम्मेलन में लघुकथा की उद्देश्य पर भी विस्तार से चर्चा हुई। प्रत्येक साहित्यिक विधा तभी तक उचित और सार्थक कहलाती है ,जब उसका मूल्यबोध सम्पूर्ण समाज को उद्वेलित कर सके। लघुकथा की समीक्षाओं में भी यह एक महत्त्वपूर्ण मानक है। प्रत्येक विधा का मूल्यबोध समाज सापेक्ष होता है। अखिल भारतीय लघुकथा मंच के अध्यक्ष डॉ. सतीशराज पुष्करणा ने कहा कि लघुकथा के लिए सम्प्रेषणीय होना पहली शर्त है। लघुकथा में सहजता लघुकथा की जीवन्तता है। लघुकथा में प्रतिनायक की भूमिका क्या होती है, इस पर चर्चा हुई। कहा गया कि लघुकथा के कथ्य में प्रतिनायक की उपयोगिता बहुत है। वस्तुत: नायक और प्रतिनायक एक–दूसरे के पूरक भी कहे जा सकते हैं।
लघुकथा को पाठ्यक्रमों में शामिल करने की भी माँग उठी। कुछ लोगों ने कहा कि छोटे–छोटे प्रयास से इस दिशा में कुछ सफलता तो मिली है, लेकिन इसे और आगे बढ़ाने के लिए जोर देने की जरूरत है। सिद्धेश्वर ने लघुकथा अकादमी बनाने की भी मांग कर डाली। जिस पर कुछ कथाकारों ने कहा कि आज की स्थिति में यह संभव नहीं है, क्योंकि साहित्य की अलग–अलग विधा पर अकादमी बनाना सही नहीं होगा।
सम्मेलन के शुरूआती दौर के साथी नागेंद्र प्रसाद सिंह ने भूमंडलीकरण के दौर में लघुकथा की उपयोगिता और पुनर्संरचनावाद की संभावना पर भी प्रकाश डाला। कहा कि लघुकथा में इसकी ज्यादा सम्भावना है, क्योकि जिस जगह पर रचना खत्म होती हैं, वही से एक नई रचना का जन्म भी होता है। कुल मिलाकर यह सम्मेलन सफल रहा। सफल इस मामले में कि यह महज आयोजन बन कर नहीं रहा, बल्कि लघुकथा के विविध पक्षों पर गहरी पड़ताल हुई। लेखिकाओं की भी अच्छी भागीदारी रही। बिना किसी सरकारी सहायता के बिहार के साहित्यकार अपने दम पर अगर राष्ट्रीय स्तर का सार्थक आयोजन कर रहे हैं, तो इसकी तारीफ होनी ही चाहिए। ’
-0-प्रस्तुति:डॉ. ध्रुव कुमार,पी.डी. लेन,महेन्द्रू,पटना–800006 (बिहार)