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Channel: लघुकथा
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बदरंग

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गर्मी की छुट्टियों में आए बच्चों ने एक कमरेमें खेलनगरी बसा ली थी  जहाँ वे सारा दिन उधर मचाए रखते । एक दिन घर के एक बुज़ुर्ग उनके कमरे में चले गये । ” दादू, दादू देखो तो , जाने क्यों यह मियामिट्ठू पीला पड़ता जा रहा है ।”
दादू की एक नज़र हरे हारेसहमे हुए तोते पर गयी , दूसरी नज़र थोड़ी दूर बैठे, बंदर और बिल्ली पर गयी, जो एक इकरंगी छतरी केनीचे मज़ेसे बैठे थे ।
” नानू, देखो तो गमले की पत्तियाँ और कलियाँ जाने क्योंबार बार काँप उठती हैं, हवा नहीं चल रही हो तो भी ।”
नानू ने देखा पास ही वनमानुष और भालू बैठे थे, और उनके पार्श्व में एक मुच्छल पुलिस वाला भी खड़ा था ।
” दादू, इस गिलहरी की पीठ पर से भगवान की धारियाँ जाने क्यों ग़ायब हो गईं । कैसी रुंड- मुंड सी लग रही है ।  छि: ”
” नानू ,  इस तिरंगे के जाने क्यों दो रंग फीके पड़ गए हैं, और एक रंग गाढ़ा हो चला है ?”
” बच्चो, यह सब गर्मी की वजह से या कोरोना की लहर के कारण हो रहा है , तुम सावधान रहना   बाहर न जाना”
दंग हुए बुज़ुर्ग ने तसल्ली देना चाही । कमरे से बाहर निकलते हुए उन्होंने देखा कि एक दुल्हन गुड़िया औंधेमुँह रेल की पटरी पर लेटी है और एक शरारती बच्चा चाबी घुमा इंजिन चालू कर रहा है । बाक़ी दो लड़के तो वीडियो बना रहे हैं लड़कियाँ फटाफट गुड़िया को उठा  दूल्हे को सौंप रही हैं ।
बुज़ुर्ग पसीने से तर बाहर आए और वाश बेसिन पर खड़े हो मुँह पर छींटेमारने लगे । तभी दर्पण में देखा कि बालों पर से मेहँदी का रंग सहसा उड़ चुका है , और वह बदरंग लग रहे हैं — ?
( अमृतलाल मदान, शब्दसार कुंज, 1150/11, प्रोफ़ेसर कालोनी   कैथल (हरि.) -136027, mob: 9466239164

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