“माधव.. कौन है रे?” -सेठ ने अपने नौकर को किसी से बात करते सुनकर पूछा।
” हमार बिटवा है, मालिक, कागज पर अँगूठा लगवाने आया है।”
” अच्छा!…. तेरा बेटा तो काफी बड़ा हो गया है।”- बच्चे को ऊपर से नीचे तक देख कर सेठ ने कहा।
“जी मालिक, सब ईश्वर की कृपा है।”- माधव ने हाथ जोड़कर आसमान की तरफ देखते हुए कहा।
” माधव. .. लाया कर अपने बेटे को, अपने साथ काम पर, सिखा इसे भी, हमारी हवेली के तौर- तरीके, यहाँ के लोगों की पसंद -नापसंद।”
” नहीं मालिक, ये तो पढ़ने जाता है। ”
“अरे! … पढ़कर करेगा क्या? अपनी तरह काम -काज सिखा। आखिर तेरे बेटे को भी तो, हमारे बेटे की तरह, हमारी विरासत ही संभालना है।”- सेठ ने अपनी मूँछों को सहलाते हुए कहा।
“नहीं मालिक, अब समय बदल चुका है, तो विरासतें भी बदलना चाहिए।”
” क्या मतलब?”- सेठ ने कंधे से सरकते अंगोछे को सँभालते हुए कहा।
” हमारे पुरखों की गलती हम थोड़े ही दोहराएंगे।”- कहकर माधव ने स्कूल का बस्ता, बेटे के कंधे पर टांग दिया।
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