महानगर का रिहायशी इलाका।
संध्या पाँच बजे के लगभग…

कॉलेज से लौटती गुलाबी स्कूटी पर सवार लवीना की नजर सामने से आते हुए एक परेशान से खस्ताहाल बुजुर्ग पर टिक गई है।
चेहरे पर हताशा इस ठंड के मौसम में भी जबकि सारा शहर भयंकर शीतलहर की चपेट में काँप रहा है। उनके चेहरे पर पसीना चुहचुहा रहा है।
” कुछ तो गड़बड़ है “
सोच लवीना ने उनके पास पहुँचकर स्कूटी रोक कर दी।
उसे अपनी ओर आता देख वह जोर-जोर से हाथ हिलाते हुए सिसक पड़े
” क्या बात है दादू ठंड में पसीना! सब ठीक है ना ?”
बेसुध हुए बुजुर्ग सहसा कुछ बोल नहीं पाए । तब लवीना ने दोबारा फिर जोर देते हुए पूछा,
” दादू आप सुन रहे हैं, मेरी बात आप कहाँ रहते हैं और कहाँ जाना है आपको ? “
अब उनकी चेतना लौटी उनका गला रुंध गया और स्वर टूटने लगा है।
यह देख लवीना ने पास ही बने बेंच पर सहारा देकर उन्हें बिठाया फिर अपने बैग से पानी की बोतल निकाल उन्हें पिलाकर अत्यंत मुलायम आवाज में पूछा-” दादू आप शायद रास्ता भूल गए हैं ?
” हाँ बिटिया, शहर आज ही आया हूँ। यहाँ मेरा बेटा रहता है और उसके पास ही जाना है; पर कहाँ यह अब मुझे पता ही नहीं चल रहा है ” वे एक साँस में बोल गए।
“आपको जाना कहाँ है, आप बता दें मैं पहुँचा दूँगी ” वह उनकी मानसिक स्थिति से अवगत हो चुकी है।
महानगर में पहली बार इस अनजान लड़की के मुँह से सहानुभूति भरी आवाज सुनी और फिर काँपते हाथों से कुर्ते की जेब से परिचय पत्र निकाल लिया।
शाम का वक्त अँधेरा फैलने लगा है,
” मेरा बेटा आज किसी काम में वह व्यस्त था, तो मैंने कहा, तुम्हें स्टेशन आने की जरूरत नहीं है। मैं पहुँच जाऊँगा पर मैं रास्ता भूल गया हूँ बिटिया , दोपहर से शाम होने को आई है ।यहाँ सभी घर मुझे एक जैसे लग रहे हैं तुम मुझे पहुँचा दोगी ? “
मोबाइल की रोशनी में पता पढकर लवीना ने उनके चेहरे की ओर देखा भूख और थकान से बेहाल हुआ कातर चेहरा।
“दादू आपको भूख लगी है ना! “
सुनकर उनकी आंखें चमक उठी पर फिर बुझी आवाज में कहा,” मेरा बटुआ भी किसी ने मार लिया है बिटिया। “
” चिंता मत करें दादू, मैं भी तो आपके बेटे के समान ही हूँ ”
फिर बूढ़े बुजुर्ग का हाथ पकड़कर लवीना ने उन्हें रोड पार कराई और एक रेस्टोरेंटनुमा होटल में जा बैठी। अपने लिए गर्म चाय तथा दादू के लिए खाना का ऑडर दे दिया।
” लेकिन मैं तुम्हारे पैसे कैसे लौटाऊँगा ? “
” मैं चल रही हूँ ना दादू आपके साथ।”लवीना ने हँसते हुए कहा।
इसके साथ ही वह बुरी तरह से सहमे हुए बुजुर्ग से बातें करती हुई उन्हें आश्वास्त करने की कोशिश भी कर रही है लवीना के चेहरे से आत्मीयता झलक रही है।
जिसे देख उन्होंने धीरे से कहा,”मैंने सुना था! शहर के लोग और उनके रहन-सहन बहुत अलग होते हैं बिटिया,पर आज तुम्हें देख कर जान पाया,”गाँव हो या शहर ‘इन्सान’ हर जगह बसते हैं “।
-0-