उस दिन चौराहे पर एक साँड बिफर गया , एक संभ्रांत महिला को उठा कर फेंक दिया , फिर सींगों मे उलझा हवा में उछल दिया , फिर से सींगों मे उलझाकर फेंक मारा एक बार दो बार, तीन बार । तब तक भीड़ जमा हो गई थी। साँड को भगाने का जतन किया गया। किसी प्रकार महिला को बचाया गया । उस महिला को पास के अस्पताल में पहुँचाया गया पर तब तक उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे । नियमित पुलिस केस था उसे तफ्तीश सौंपी गयी थी ।
इस विभाग मे उसे बीस साल से कुछ अधिक ही हो गया था । इन बीस सालों में उसने अनगिनत लाशों की तफतीश की , अनगिनत लाशों को फुँकवाया या दफनाया था । उसे यह सब जैसे फाइल निपटाने जैसा लगता था, और था भी कमोबेश ऐसा ही , रोज़मर्रा का काम जो था ।
यूँ तो सारा केस साधारण था। दुर्घटना के अनेक गवाह थे, पर नियमानुसार कानूनी कार्यवाही तो होनी ही थी, सो रोजनामचा में इन्द्राज हुई , पोस्ट-मार्टम भी हुआ, शिनाख्ती- कार्यवाही, समाचारपत्र घोषणा नियमानुसार हुई पर अंत तक मृतका का कोई दावेदार ना था। सामाजिक और शासकीय व्यवस्थानुसार मृतका को लावारिस घोषित किया गया। अब पुलिस की निगरानी मे ही उसका अंतिम संस्कार किया जाना था ।
जाने क्यों उसे तफ्तीश के शुरू से ही उस मृतका से आसक्ति सी हो रही थी । बहुत बचपन में उसकी माँ की मृत्यु कब हुई, उसे पता नहीं , न ही उसे माँ चेहरा ही याद था। लावारिस लाश की अंत्येष्टि की सारी कार्यवाही हो चुकी थी । श्मशान पर कार्यवाही की दौरान उसने अंदर से कुछ बैचेनी सी महसूस की । उसे अपने अंदर का पुलिसमैन पिघलता हुआ -सा लगा । उसने टोपी बेल्ट निकाली। , वर्दी उतार स्नान किया, धवल वस्त्र मुंडित सर वह चिता के पास था। उसने पुत्रवत् सारे विधि- विधान किए ।
सारा श्मशान जैसे स्तब्ध था , एक अनजान पुत्र ने एक अनजान माँ को मुखाग्नि दी।
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कर्नल डॉ . गिरिजेश सक्सेना<जी-1,इन्द्रप्रस्थ, एयरपोर्ट रोड , भोपाल(मप्र)-462030,
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