लड़ाई / लड़ै
अनुवादकःडॉ. कविता भट्ट ससुरा क नौं आयूं तार ब्वारी न ली क पौड़ी दे। तार बतलान्दू कि ऊंकू फौजी बाँका बहादुरी से लड़ी अर लड़दी बगत मोरी ग्याई … देसौ खुणी सईद ह्वे ग्याई। “सुख त छैं चा ना ब्वारी!” वीं का...
View Articleअच्छा आदमी
मेरा और उसका जन्म एक साथ,एक ही दिन हुआ था। नहीं, हमें जुड़वाँ तो नहीं कहा जाएगा; क्योंकि माँ ने एक जिस्म के रूप में हमें जन्म दिया था। वो अलग बात है कि मैं जन्मजात मिले गुण-धर्म के अनुसार अपने रास्ते...
View Articleउन सुनहरे दिनों की तरह
“चलो, ओके मुकेश भैया”-चाय की दुकान के मालिक कमलेश सेठ का स्वर उसे बहुत पीड़ा दे गया, “पहुँचो कहीं और। कोई और काम देख लेना अब।ओके?” “जी सेठ जी, राम राम।” आज रोड के उस पार की विशाल बहुमंज़िला इमारत...
View Articleचौपाल
“दादा जी, आप तीन दिन पहले ही तो आये थे और आज गाँव वापस श्री जाने लगे। आप हमेशा हमारे पास क्यों नहीं रहते?” गाँव वापस जाने की तैयारी करते दादाजी के सामने सोनू मचल गया था। “बेटा, यहाँ पूरे दिन मुझे...
View Articleअदालत में हिंदी
अदालत में आवाज लगाई गई – हिंदी को बुलाया जाए। हिंदी बड़ी सी बिंदी लगाए भारतीय संस्कृति में लिपटी फरियादी के रूप में कटघरे में आ खड़ी हुई। मुझे अपना केस खुद ही लड़ना है जज साहब! – उसने कहा। अच्छा, आपको...
View Articleहार-जीत
मैं और सुरेखा जी एक ही रैंक के अधिकारी थे। मेधा और बुद्धि में कोई इक्कीस और बीस होता। सुरेखा जी मुझसे उन्नीस थीं; लेकिन वे स्वयं को मुझसे सुपीरियर ही मानतीं। मुझे आपत्ति नहीं होती; लेकिन...
View Articleबुद्ध
महाबोधि-मंदिर को दूर से ही प्रणाम करते हुए,उन्होनें अपनी मनोकामना पूर्ण होने की मन्नत माँगी। कुछ ही देर में वे रघुआ के कच्चे-घर के बाहर खाट पर बैठे थे। दूर तक फैले विशाल खेतिहर जमीन को देखते हुए...
View Articleरैगिंग
“आई लव यू मैम।”-सुनकर अनुराधा के कान झनझना गए। ” व्हाट … व्हाट आर यू सेइंग इडियट!” जी में आया, बोलने वाले को कसकर एक थप्पड़ रसीद कर दे। किसी तरह खुद को रोकते हुए पलट कर देखा, तो एक दुबले – पतले-...
View Articleबेचारा
निर्देश निधि उनकी बड़ी बहू एक कामकाजी महिला थी। दिन भर ऑफिस, आए दिन कामवाली की छुट्टी, सामंती पति के रुमाल देने से खाना परसने तक के ढेरों काम। उस पर तीन बरस के छोटे से बच्चे की देखभाल। कोई हँसी खेल था...
View Articleलघुकथाएँ
रमेश कुमार संतोष 1-अपना खून लड़की होने के समाचार ने सबके चेहरों पर उदासी ला दी। सब एक दूसरे को उदास चेहरे से देख रहे थे । फोन की घण्टियाँ बजने लगी । ” लड़की…वह भी दूसरी….वह भी आप्रेशन से…इतनी तकलीफ़...
View Articleअंतिम बातचीत
अनुवाद:राजकुमार गौतम पिता की साँसें बहुत मुश्किल से आ पा रही थीं। यहाँ तक कि उस धरधराहट को सुनना तक मुझे मुश्किल हो उठा। मगर उनकी मदद कोई नहीं कर सकता था। मेरे मन में कभी–कभी यह कौंध उठता कि ये...
View Articleटाटा अंकिल
अनुवादक (अवधी)- सविता मिश्रा ‘अक्षजा’ बसिया जैसन्है अगवा कौ बढ़ी, पाछे से चढ़ी मेहरारु जोरि जोरि से चिखय-चिल्लाय लाग। “अय रोका रोका…बसवा के रोका…म्होरी बिटिया तौ निचवे रहि गइ, चढ़िन न पायेस…” बस ठसाठस...
View Articleबाहर निकली औरत : संवेदनाओं की परख
कमल चोपड़ा के लघुकथा- संग्रह ‘बाहर निकली औरत’ में कुल सत्तर लघुकथाएँ संगृहीत हैं, जो 1985 से 2020 तक हंस, सारिका, कथादेश, कथाक्रम, गगनांचल, संरचना, समावर्तन, नया ज्ञानोदय, हरिगंधा, वीणा, दीप ज्योति,...
View Articleनई पुस्तकें
दावानल के दौर में (लघुकथा संग्रह): उमेश महादोषी, संस्करण: प्रथम 2023,मूल्य:100/-पृष्ठ-80, प्रकाशक : सृजन बिम्ब प्रकाशन, 301,सनशाइन-2, के टी नगर, काटोल रोड,नागपुर-440013 गोधूलि (यादों में डॉ सतीशराज...
View Articleलघुकथा में प्रयोग
रचना में प्रयोग निरुद्देश्य नहीं किए जाते। उनका उद्देश्य बौद्धिक विलास करना भी नहीं होता, अपितु रचना की शक्ति को उभारना, ताकि पाठक उसे सही परिप्रेक्ष्य में तीव्रता के साथ महसूस कर सके। जैसे कला-कला के...
View Articleअंतर्मन तक उतरती लघुकथाएँ
हिंदी साहित्य में लघुकथा विधा मेरी पसंदीदा विधा है मैं जीवन – यथार्थ से जुड़ी विसंगतियों को इंगित करती रचनाओं को अधिकतर पसंद करता हूं। जीवन तथा समाज के यथार्थ का पोस्टमार्टम करती रचनाएँ अपने दिल के...
View Articleचकोर
उस घर के सामने पार्क में एक लड़का रोज़ आता और पेड़ के नीचे खड़ा हो कर चार बजे का इंतज़ार करता। चार बजते ही उस घर की बालकनी में दूधिया से रंग की एक नाज़ुक सी लड़की आती ,कभी अपने बाल सुखाती,कभी वहाँ के...
View Articleविश्वास
रात के तीन बज रहे थे… वह पति की प्रतीक्षा कर रही थी… मगर वह अब तक नहीं लौटा, तो अपने में ही बड़बड़ाई कि आजकल देख रही हूँ कि कई दिन से ये रात-रात भर गायब रहते हैं… या काफी देर रात गए लौटते हैं… पूछने...
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